दयानंद सरस्वती (12 फरवरी 1824 – 30 अक्टूबर 1883) भारतीय समाज सुधारक, धर्मगुरु और आर्य समाज के संस्थापक थे। उन्होंने भारतीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, मूर्तिपूजा, जातिवाद और अन्य सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और वे हिन्दू धर्म को वास्तविक रूप में सुधारने की दिशा में काम करते रहे।

प्रारंभिक जीवन:
दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के मोरबी जिले के एक गाँव “टंकारा” में हुआ था। उनका नाम पहले ‘मुलशंकर’ था। उनके परिवार में धार्मिक आस्थाएँ थीं, और वे बचपन से ही विद्या की ओर आकर्षित थे। 14 साल की आयु में उन्होंने अपने परिवार से घर छोड़ दिया और वे सत्य की खोज में निकल पड़े।
आर्य समाज की स्थापना:
दयानंद सरस्वती ने 1875 में ‘आर्य समाज’ की स्थापना की। उनका उद्देश्य हिन्दू धर्म में सुधार लाना था, ताकि समाज में व्याप्त कुरीतियों और अंधविश्वासों को समाप्त किया जा सके। आर्य समाज ने शिक्षा, समानता, और धर्म में शुद्धता की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किए।
उन्होंने वेदों को सर्वोत्तम ग्रंथ माना और कहा कि धर्म का पालन केवल वेदों के अनुसार ही किया जाना चाहिए। उनके अनुसार वेद ही जीवन के सर्वश्रेष्ठ मार्गदर्शक हैं और किसी भी प्रकार के अंधविश्वास और मूर्तिपूजा से बचना चाहिए।
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दयानंद सरस्वती के सिद्धांत:
- वेदों की सर्वोच्चता: दयानंद सरस्वती का मानना था कि वेद ही सबसे प्रामाणिक और सर्वोत्तम धार्मिक ग्रंथ हैं। उन्होंने सभी हिन्दू परंपराओं को वेदों से जोड़ने का प्रयास किया।
- मूर्तिपूजा का विरोध: उन्होंने मूर्तिपूजा और अन्य धार्मिक अनुष्ठानों का विरोध किया। उनका मानना था कि ईश्वर निराकार है और उसका कोई रूप नहीं होता।
- सामाजिक सुधार: दयानंद सरस्वती ने हिन्दू समाज में जातिवाद, बाल विवाह, सती प्रथा, और अन्य कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और समान अधिकार की भी वकालत की।
- शुद्धि आंदोलन: वे हिन्दू धर्म की शुद्धि के पक्षधर थे और उन्होंने ‘शुद्धि आंदोलन’ की शुरुआत की, जिसके तहत हिन्दू धर्म में आकर मुस्लिम और ईसाई धर्मों को अपनाने वाले लोगों को फिर से हिन्दू धर्म में वापस लाने का प्रयास किया।
योगदान और प्रभाव:
दयानंद सरस्वती के योगदान को उनके समय में और आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है। उन्होंने भारतीय समाज को धार्मिक और सामाजिक दृष्टि से जागरूक किया। उनके दृष्टिकोण ने भारतीय समाज में एक नया दृष्टिकोण उत्पन्न किया, जिसमें धर्म के प्रति सच्ची आस्था और मानवता के उच्चतम आदर्शों की आवश्यकता थी।
मृत्यु:
दयानंद सरस्वती का निधन 30 अक्टूबर 1883 को हुआ। उनकी मृत्यु के समय तक वे भारतीय समाज में एक बड़े सुधारक के रूप में स्थापित हो चुके थे। उनकी शिक्षाएँ और विचार आज भी भारत और विदेशों में प्रभावी हैं।
दयानंद सरस्वती ने भारतीय समाज को एक नई दिशा दी और अपने विचारों के माध्यम से सामाजिक और धार्मिक सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज ने भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज भी यह संगठन समाज के विभिन्न पहलुओं में सुधार के लिए कार्य कर रहा है।
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दयानंद सरस्वती और आर्य समाज पर आधारित Q&A
प्रश्न 1: दयानंद सरस्वती का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के मोरबी जिले के टंकारा गाँव में हुआ था।
प्रश्न 2: दयानंद सरस्वती का असली नाम क्या था?
उत्तर: उनका असली नाम मुलशंकर था।
प्रश्न 3: आर्य समाज की स्थापना कब और कहाँ की गई?
उत्तर: आर्य समाज की स्थापना 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में की गई।
प्रश्न 4: दयानंद सरस्वती ने किस ग्रंथ को सर्वोत्तम माना?
उत्तर: उन्होंने वेदों को सर्वोत्तम और सार्वभौमिक धार्मिक ग्रंथ माना।
प्रश्न 5: दयानंद सरस्वती ने किन सामाजिक बुराइयों का विरोध किया?
उत्तर:
- मूर्तिपूजा
- जातिवाद
- बाल विवाह
- सती प्रथा
- अंधविश्वास
प्रश्न 6: दयानंद सरस्वती का प्रसिद्ध नारा क्या था?
उत्तर: उनका प्रसिद्ध नारा था “वेदों की ओर लौटो” (Go Back to the Vedas)।
प्रश्न 7: शुद्धि आंदोलन क्या था?
उत्तर: शुद्धि आंदोलन का उद्देश्य उन लोगों को फिर से हिन्दू धर्म में शामिल करना था, जिन्होंने विभिन्न परिस्थितियों में अन्य धर्म अपना लिए थे।
प्रश्न 8: दयानंद सरस्वती का धर्म के प्रति क्या दृष्टिकोण था?
उत्तर: उनका मानना था कि धर्म को वेदों के अनुसार शुद्ध और वैज्ञानिक रूप में अपनाना चाहिए। उन्होंने अंधविश्वास, अवैज्ञानिक परंपराओं और बाहरी दिखावे का विरोध किया।
प्रश्न 9: उनकी मृत्यु कैसे हुई?
उत्तर: दयानंद सरस्वती को 1883 में षड्यंत्र के तहत जहर दिया गया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।
प्रश्न 10: आर्य समाज के प्रमुख उद्देश्य क्या हैं?
उत्तर:
- वेदों के प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना।
- समाज में समानता और शिक्षा का प्रसार।
- जातिवाद और अंधविश्वास का उन्मूलन।
- महिला सशक्तिकरण।
- सामाजिक और धार्मिक शुद्धि।